मेरी कहानी
असमंजस में आलम ,कुछ उलजन है मन के भीतर
कैसे पकडूं एक सिरा मैं ,सारे धागे उलजे उलजे
क्या पाना है क्या करना है ये भी ना पहचानूं में
सारी रात नींद ना आए पहर हो गए जागे जागे
सपने तो देखें है मैंने, सच होंगे ना जानूं मैं
छूने को जो दौड़ पडूं तो ये भी भागे आगे आगे
सपने ही तो सच होते है फिर क्यों क्यूँ डरता मेरा मन
कल क्या होगा यही सोचकर जाने गुजरे कितने सावन
पतझड़ के आने पर ही तो आता मौसम बासन्ती
नन्हे पौधे आस ना खोना यही सीख तो बतलाती
जड़े हुए पत्तों पर फिर नई बहार खिली है
खोए हुए भरोसे को जैसे नई उम्मीद मिली है
उलजन सारी दूर हो रही जो धागे थे उलजे उलजे
हाथ आ गई गुत्थी मन की अब लगते है सुलजे सुलजे !!